Saturday, October 24, 2009

Manushyata- Maithilisharan Gupt

Hey! I am so so so thankful to those people who have tried to digitise this poetry.. i have grown up listening my mom hum this poem in kitchen.. I memorised it in school days for I liked it even then .. she would explain the meaning to me. Today i found myself humming it out-of-the-blue.. take a read and, well, i wish i could post the 'tune' in which it is to be hummed.. it makes the poem all the more beautiful..
Those who are more comfortable reading the English script: click HERE.

मनुष्यता


विचार लो कि मर्त्य (mortal) हो न मृत्यु से डरो कभी,
मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।
हुई न यों सु-मृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,
मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए।

यही पशु-प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।

उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती,
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती,
तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।

अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।

सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है वही,
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे?

अहा! वही उदार है परोपकार जो करे,
वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।

अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े,
समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े।
परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी,
अभी अमर्त्य-अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।

रहो न यों कि एक से न काम और का सरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।

"मनुष्य मात्र बन्धु है" यही बड़ा विवेक है,
पुराण पुरुष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है,
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।

अनर्थ है कि बंधु हो न बंधु की व्यथा हरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति विप्र जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।

14 comments:

  1. whatdoes this mean
    सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है वही,
    वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
    विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
    विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे?
    tell em fast gotta submit it
    thanks in advance!!!!

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  2. ok...

    It means..actually i am not a Hindi scholar but keeping in mind the theme of the poem I think the stanza you mentioned tries to resonate something of this sort:

    Sympathy is needed, it is the biggest glory
    Control is actually self made
    When even Gautam Buddhas rebellious nature got drowned in compassion,
    then how can the otherwise courteous public remain unperturbed

    The poet tries to explain that one needs to be sympathetic towards fellow people as it is the biggest glory and the biggest form of power. He says that control is actually to be exercised from the inside and not over others. He explains by elucidating that when even Gautam Buddha's rebellious nature got carried away in the stream of compassion, then how can the docile, courteous and respectful world not bow down before the one who shows sympathy with other beings?

    After this the poet adds that "he is generous who works for the good of others, he is human who dies for the sake of other"

    I hope this helps you. :)

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  3. Please Let Me Know The Tune in which This Poem Is Sung...

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  4. अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े,
    समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े।
    परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी,
    अभी अमर्त्य-अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।
    What does dis mean?

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  5. Hey Niyya,
    I am grateful to you because this has helped me lot
    Thank You

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  6. I guess you skipped a paragraph:
    raho na bhool ke kabhi madandh tuchch vitt mein
    sanath jaan aapko karo na garv chitt mein
    anaath kaun hai yahaan triloknath saath hai
    dayaalu deenabandhu ke bade vishal haath hain
    ateev bhagyaheen hai adheer bhaav jo bhare
    vahi manushya hai ki jo manushya ke liye mare

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  7. is ur name niyati :D. cause mine is and everyone calls me niya too.anyway thanks that helped me too but can u please explain this para:
    अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े,
    समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े।
    परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी,
    अभी अमर्त्य-अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।

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  8. No, My name is not Niyati. :) I can explain the paragraph you mentioned but I suspect I might be slightly wrong with the last line. I will ask my mom about the meaning. And post it for you.

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  9. Is it possible to get the meanings in hindi ?????

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  10. A stanza is missing

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  11. Can I please get the explanation in Hindi?

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